Ho Ghode Aswar Bharatari | हो घोड़े असवार भरथरी, बियाबान मँ भटक्या



हो घोड़े असवार भरथरीबियाबान मँ भटक्या।

बन कै अन्दर तपै महात्मा,देख भरथरी अटक्या॥टेर॥
घोड़े पर से तुरत कूद करचरणां शीश नवाया।
आर्शीवाद देह साधू नेआसन पर बैठाया॥
बडे प्रेम सँ जाय कुटी मँएक अमर फल ल्याया।
इस फल को तू खाले राजाअमर होज्या तेरी काया॥
राजा नै ले लिया अमर फलतुरत जेव मँ पटक्या।
बन कै अन्दर तपै महात्मादेख भरथरी अटक्या॥1
राजी होकर चल्या भरथरीरंग महल मँ आया।
राणी को जा दिया अमरफलगुण उसका बतलाया॥
निरभागण राणी नै भी वो नहीं अमर फल खाया।
चाकर सँ था प्रेम महोबत उसको जा बतलाया॥
प्रेमी रै मन प्रेमी बसताप्रेम जिगर मँ खटक्या।
बन कै अन्दर तपै महात्मादेख भरथरी अटक्या॥2
उसी शहर की गणिका सेतीथी चाकर की यारी।
उसको जाकर दिया अमरफल थी राणी सँ प्यारी॥
अमर होयकर क्या करणा हैगणिका बात बिचारी।
राजा को जा दिया अमरफल,इस को खा तपधारी॥
राजा नै पहचान लिया हैहोठ भूप का छिटक्या।
बन कै अन्दर तपै महात्मादेख भरथरी अटक्या॥3
क्रोधित होकर राज बोल्याये फल कित सँ ल्याई।
गणित सोच्या ज्यान का खतरासाँची बात बताई॥
चाकर दीन्या भेद खोलजद होणै लगी पिटाई।
हरिनारायण शर्मा कहताबात समझ में आई॥
उपज्जा ज्ञान भरथरी को जदबण बैरागी भटक्या।
बन कै अन्दर तपै महात्मादेख भरथरी अटक्या॥4

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