Thari Sufal Kamai Maharaj Bharathari | थारी सुफल कमाई महाराज भरथरी थारी



थारी सुफल कमाई महाराज भरथरी थारीभरथरी थारी।

मालिक कै कारण जोग फकीरी धारी॥टेर॥
है होणहार बलवानकर्म गति न्यारी।
बिधना का लिखिया लिखटरै नहीं टारी॥1
थारा राजपाट धन मालसभी रुल ज्यावै।
थारा देख के भगवाँ भेषशरम मोय आवै॥2
है राजपाट घनमालसपन की माया।
भिक्षा दे पिंगला मातभरथरी आया॥3
राणी खड़ी सभा कै बीचलट इयाँ तोड़ै।
मेरा सात फेराँ का पीवमतीना मुख मोड़ै॥4
तेरो मदियो गोरखनाथपति भरमाया।
मेरो राजन बिछुड्यो जायतड़फ रही काया॥5
मत देवो गुरु नै गालअमर करी काया।
मत तड़फै पिंगला मातप्रभु की माया॥6
गुरु खड्या जंगल कै बीचदेया रया हेला।
थे आओ भरतकुमार गुरु का चेला

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