Nar Chhod De Kapat Ka Jaal | नर छोड़ दे कपट के जाल, बताऊँ तनै तिरणे की तदबीर
नर छोड़ दे कपट के जाल, बताऊँ तनै तिरणे की तदबीर ॥टेर।
हरि की माला ऐसे रटणी, जैसे बांस पर चढज्या नटनी
मुश्किल है या काया डटनी, डटै तो परले तीर॥1॥
गऊ चरणे को जाती बन मे, बछडे को छोड़ दिया अपणे भवन मे
सुरत लगी बछड़े की तन मे, जैसे शोध शरीर॥2॥
जल भरने को जाती नारी, सिर पर घड़ो घड़ै पर झारी
हाथ जोड़ बतलावे सारी, मारग जात वही॥3॥
गंगादास कथै अविनाशी, गंगादास का गुरु संयासी
राम भजे से कटज्या फांसी, कालु राम कहीं॥4॥
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